दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। सरकारी अस्पताल में सुविधाओं और व्यवस्था की कमी का एक और मामला सामने आया है, जहां एक मृतक के मासूम बच्चों को अपने पिता के शव को लेने के लिए दो दिन तक इंतजार करना पड़ा। यह घटना एनएससीबी मेडिकल कॉलेज अस्पताल की है, जहां दो दिन तक लाश का पोस्टमॉर्टम नहीं हो सका।
24 मई की रात को सिवनी के कोतवाली थाना क्षेत्र में एक ठेले की टक्कर के कारण राकेश उर्फ पप्पू ने अंकित मिश्रा और उनकी पत्नी अंजना मिश्रा पर चाकू से हमला कर दिया था। इस हमले के बाद मिश्रा दंपती को उपचार के लिए जबलपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया। उपचार के दौरान अंकित मिश्रा की मौत हो गई, जबकि उनकी पत्नी का उपचार मेडिकल कॉलेज अस्पताल में चल रहा है।
अंकित मिश्रा और उनकी पत्नी को जिस एंबुलेंस से लाया गया था, उसके चालक ने घायल का नाम मनीष मिश्रा दस्तावेजों में लिखवा दिया। नाम में इस अंतर के कारण मृतक का पोस्टमॉर्टम दो दिनों तक नहीं हो पाया। इस गलती की वजह से मृतक के 12 वर्षीय बेटे और 10 वर्षीय बेटी को अपने पिता के शव के पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल प्रबंधन और पुलिस के चक्कर लगाने पड़े।
अस्पताल के बाहर दो दिनों तक इंतजार करते हुए, मासूम बच्चों को अपने पिता की लाश को प्राप्त करने के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यह स्थिति न केवल बच्चों के लिए भावनात्मक रूप से दर्दनाक थी, बल्कि यह भी दर्शाती है कि सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था और सुविधाओं में कितना सुधार आवश्यक है।
यह घटना अपने आप में हैरान करने वाली है और यह सवाल उठाती है कि सरकारी अस्पतालों में कब पूरी तरह से सुधार आएगा। मरीजों और उनके परिवारों को इस तरह की परेशानियों का सामना क्यों करना पड़ता है? क्या सरकारी तंत्र में इतनी गंभीर खामियां हैं कि एक बच्ची को अपने पिता के शव को प्राप्त करने के लिए दो दिन इंतजार करना पड़ता है?
अस्पताल प्रशासन और पुलिस द्वारा इस मामले की जांच की जा रही है, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। इस घटना ने स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर एक बार फिर से सवालिया निशान लगा दिया है।