दलगत राजनीति में जातीय विभाजन, सामाजिक एकजुटता को चुनौती...?

दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। राजनीति, जिसने आजादी के बाद लोकतंत्र को अपनी नींव बनाया, लोकतंत्र यानि जनता को उसके वोट द्वारा सरकार चुनने का अधिकार है। आज विडंबना यह है कि जिस देश का संविधान समानता, बंधुत्व, और समरसता की बात करता है, वहां जातीय वर्गीकरण राजनीति का मुख्य आधार बन गया है। 

जातियां जो कभी केवल सामाजिक संरचना का हिस्सा थी आज विभाजन के जाल में उलझती जा रही है। आजादी के बाद भारतीय राजनीति का प्रारंभिक उद्देश्य राष्ट्र निर्माण और समाज के हर वर्ग में समानता लाना था। लेकिन जैसे-जैसे राजनीतिक दलों ने वोट बैंक की राजनीति को अपनाया, जाति का उपयोग एक प्रभावी हथियार के रूप में होने लगा। राजनीति में आरक्षण प्रणाली और जातिगत जनगणना जैसे मुद्दे राजनीतिक दलों के लिए बोट सुनिश्चित करने के साधन बन गए। राजनीतिक दल अब नीतियों और विकास के मुद्दों पर नहीं, बल्कि जातीय समीकरणों पर अपनी रणनीतियां बना रहे हैं। 

चुनावों में उम्मीदवारों का चयन जाति आधारित जनसंख्या को ध्यान में रखकर किया जाता है। यह न केवल समाज में विभाजन बढ़ा रही है, बल्कि हमारी सामाजिक एकता को भी खतरे में डाल रही है। जातिगत राजनीति से राजनीतिक दलों को तो लाभ मिल रहा है परंतु वास्तविकता में जातीय राजनीति ने समाज को बांटने का काम किया है। जहां एक ओर यह निचले वर्गों को अधिकार दिलाने का दावा करती है, लेकिन दूसरी ओर समाज में ईर्ष्या और विद्ववेष की भावना को बढ़ावा दे रही है। जातिगत राजनीति में जातीय समीकरणों के चलते चुनावी क्षेत्रों को आरक्षित कर दिया गया है, जिसके चलते कई अनारक्षित योग्य उम्मीदवार पीछे रह जाते हैं। 

जिसके कारण शासन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। लोकतंत्र का ढांचा कमजोर पड़ता जा रहा है और देश के विकास पर विपरीत असर पढ़ रहा है। बुनियादी मुद्दे, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार, जातीय राजनीति के कारण हाशिए पर चले गए हैं। राजनैतिक दल जातीय समीकरण साधने में इतने व्यस्त हैं कि जनहित के मुद्दों की अनदेखी हो रही है जातीय राजनीति ने देश की एकता को भी चुनौती दी है। यह जातीय विभाजन देश को विकास के पथ से भटकाने और सामाजिक अशांति को बढ़ाने का काम कर रहा है। जातीय विभाजन का यह दौर खतरनाक मोड़ पर है। यदि इसे समय रहते नहीं रोका गया, तो यह न केवल हमारे सामाजिक ताने-बाने को तोड़ेगा, बल्कि देश की प्रगति में बाधा भी बनेगा जातिवाद को खत्म करने के लिए जागरूकता सबसे प्रभावी साधन है। 

लोगों को यह समझाने की आवश्यकता है कि जातिगत आधार पर वोट देना देश और उनके दीर्घकालिक हितों के विपरीत है। राजनीतिक दलों को भी जातीय समीकरण छोड़कर विकास और राष्ट्र निर्माण के मुद्दों पर काम करना चाहिए। राजनीति में जातिवाद के उपयोग करने वालों को हतोत्साहित करने के लिए देश में कड़े कानून बनाए जाने चाहिए। अब समय आ गया है कि राजनीति दल, प्रशासन के साथ सभी धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों को मिलकर जातिवाद के इस जाल से देश को मुक्त करना चाहिए।

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