दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। शहर में डीजे के कानफोडू शोर से निजात कब मिलेगी, यह सवाल लगातार उठ रहा है। चाहे कोई भी आयोजन हो, डीजे की तेज आवाज लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है। त्योहारों के पहले जिला कलेक्टर द्वारा धारा 163 के तहत प्रतिबंधात्मक आदेश लागू कर डीजे पर नियंत्रण करने की कोशिश की जाती है, लेकिन देखने में आया है कि इस आदेश का खुलेआम उल्लंघन होता है और प्रशासन कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता। कई बार यह देखा गया है कि प्रशासन राजनीतिक दबाव या संवेदनशील मामलों में खुद को विवादों से बचाने के लिए कार्रवाई नहीं करता। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद रात 10 बजे के बाद भी डीजे का शोरगुल जारी रहता है।
फरवरी और मार्च का महीना बोर्ड परीक्षाओं और अन्य कक्षाओं की परीक्षाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है, लेकिन इसके बावजूद शहर में लाउडस्पीकर और डीजे का तेज शोर थमने का नाम नहीं ले रहा। कहीं शादी विवाह, तो कहीं धार्मिक आयोजनों के नाम पर बिना अनुमति डीजे बजाए जा रहे हैं, जिससे छात्रों की पढ़ाई और मानसिक शांति प्रभावित हो रही है।
हाल ही में जिला दंडाधिकारी ने 24 फरवरी को ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए आदेश जारी किया था, लेकिन इसका पालन नहीं किया गया। पूरे शहर में डीजे के 16 से 32 बॉक्स तक बजते रहे, लेकिन न तो पुलिस ने कार्रवाई की और न ही किसी ने आवाज कम करने की हिदायत दी।
बारातों पर कार्रवाई, लेकिन धार्मिक आयोजनों पर नहीं?
पुलिस प्रशासन ने बारातों में बजने वाले डीजे पर जरूर कार्रवाई की, लेकिन धार्मिक आयोजनों में डीजे के शोर पर कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया। मार्च के दूसरे सप्ताह में होली का त्योहार है और उसके बाद ईद भी आएगी। हर साल इन त्योहारों के दौरान डीजे का शोर चरम पर पहुंच जाता है, जिससे बीमार, बुजुर्ग, आम नागरिक और छात्र परेशान होते हैं।
कड़े कदम उठाने की जरूरत
शहर में ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए प्रशासन को सख्त कदम उठाने होंगे। परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए कोलाहल एक्ट का सख्ती से पालन कराना जरूरी है, ताकि छात्रों की पढ़ाई और आम नागरिकों की शांति भंग न हो।