दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में अंदरूनी गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। जबलपुर पूर्व विधानसभा सीट, जिसे कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है, जिसको भाजपा हर हाल में जीतना चाहती है। यही कारण है कि भाजपा ने 2028 के विधानसभा चुनाव के लिए अभी से रणनीति बनाना शुरू कर दिया है। लेकिन पार्टी के अंदर मची खींचतान इस रणनीति को कमजोर करने का काम कर रही है।
कांग्रेस का दबदबा कायम
यह विधानसभा सीट वर्तमान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता लखन घनघोरिया के पास है, जो 2008, 2018 और 2023 से लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं। 2008 से चुनाव लड़ रहे लखन घनघोरिया सिर्फ 2013 में मामूली अंतर से हारे थे। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने शानदार वापसी करते हुए भाजपा प्रत्याशी और पूर्व मंत्री अंचल सोनकर को 35 हजार से अधिक वोटों से हराकर जीत दर्ज की। 2023 में जब जिले की 8 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट मिली थी, तब भी लखन घनघोरिया अपनी सीट बचाने में सफल रहे। लखन घनघोरिया 15 साल बाद बनी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में मंत्री भी रहा चुके हैं। लखन धनधोरिया की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण उनका सरल स्वभाव और जनता से मजबूत जुड़ाव है। यही वजह है कि भाजपा के लिए यह सीट कैटेगरी में आती है. यानी उन सीटों में गिनी जाती है जहां भाजपा को जीतने में काफी संघर्ष करना पडता है।
रणनीति : युवा चेहरे पर टिकी भाजपा की निगाहें !
भाजपा ने 2023 के विधानसभा चुनाव से 6 महीने पहले अंचल सोनकर को अपना प्रत्याशी बनाया था। लेकिन भरपूर समय मिलने के बावजूद अंचल सोनकर जीत दर्ज करने में असफल रहे। अब पार्टी ने युवा नेताओं को आगे बढ़ाने की रणनीति अपनाई है। इसी के तहत भाजपा ने रत्नेश सोनकर को जबलपुर महानगर अध्यक्ष नियुक्त किया। रनेश सोनकर भाजपा के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री राकेश सिंह के करीबी माने जाते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राकेश सिंह ने ही उन्हें यह जिम्मेदारी दिलवाई है। भाजपा की इस नियुक्ति को 2028 के विधानसभा चुनाव की तैयारी का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें भाजपा रत्नेश सोनकर को लखन घनघोरिया के खिलाफ मैदान में उतार सकती है।
अंदरूनी गुटबाजी बनी भाजपा के लिए समस्या
हालांकि भाजपा की इस रणनीति को आंतरिक गुटबाजी कमजोर कर रही है। पूर्व मंत्री अंचल सोनकर अपने बेटे राम सोनकर को 2028 के चुनाव में भाजपा का प्रत्याशी बनवाना चाहते हैं। वहीं, पार्टी नेतृत्व रत्नेश सोनकर को टिकट देने के पक्ष में नजर आ रहा है।
बैनर पोस्टरों में दिख रहा है गुटबाजी का असर
अंचल सोनकर के बैनर-पोस्टरों में महानगर अध्यक्ष रत्नेश सोनकर की तस्वीर नहीं होती। वहीं रत्नेश सोनकर के बैनर-पोस्टरों में अंचल सोनकर की तस्वीर नदारद रहती है। इससे साफ पता चलता है कि भाजपा के भीतर दो धड़े बन चुके हैं, जो आगामी चुनाव से पहले पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।
परिसीमन के संभावित प्रभाव
1. कांग्रेस को नुकसान
वर्तमान में, यदि कांग्रेस को मुस्लिम बहुल 7 वार्डों से 90% या उससे अधिक वोट मिलते हैं, तो परिसीमन के बाद इन वार्डों को अलग करने से कांग्रेस की जीत का गणित गड़बड़ा सकता है। इससे कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में कमी आ सकती है, जिससे उसके जीतने की संभावना घट सकती है।
2. अन्य पार्टियों को फायदा
यदि मुस्लिम मतदाता अलग हुए तो अन्य पार्टियों, खासकर बीजेपी, को हिंदू बहुल इलाकों में फायदा मिल सकता है। इससे बीजेपी या अन्य क्षेत्रीय दलों को एक नया समीकरण बनाने का मौका मिलेगा।
3. नई सामाजिक-राजनीतिक समीकरण
परिसीमन के बाद, अन्य जातीय और धार्मिक समूहों का प्रभाव बढ़ सकता है, जिससे राजनैतिक दलों को चुनावी रणनीति बदलनी पड़ेगी। कांग्रेस को नई रणनीति अपनानी होगी, जैसे वंशकार, दलित सहित अन्य समुदायों तक अपनी पकड़ मजबूत करना।