महापौर: कांग्रेस के पोस्टर बॉय से भाजपा में गुमनामी तक का सफर, अपने ही हाथों खोई अपनी सियासी जमीन!

दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। संस्कारधानी जबलपुर की राजनीति में फरवरी 2024 में जो बड़ा उलटफेर हुआ, वह किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस को 18 साल बाद नगर निगम में सत्ता दिलाने वाले महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू ने जिस तरह से अपनी सियासी पारी खेली, उससे वे राजनीति में सीखने के लिए एक अलग अध्याय बन गए हैं। कभी कांग्रेस के पोस्टर बॉय कहलाने वाले अन्नु अब भाजपा में शामिल होने के बाद अपने ही बनाए सियासी किले में कमजोर पड़ते नजर आ रहे हैं। 

कांग्रेस में मजबूत पकड़ और महापौर तक का सफर 

साल 2021 में जब जगत बहादुर सिंह अन्नू को जबलपुर कांग्रेस का नगर अध्यक्ष बनाया गया, तब वे एक मजबूत कांग्रेस नेता के रूप में उभरने लगे थे। कांग्रेस कार्यकर्ताओं के प्रिय बन चुके अन्नू भैया ने अगले ही साल 2022 के नगर निगम चुनावों में कांग्रेस को 18 साल बाद महापौर पद पर जीत दिलाई। यह जीत न केवल जबलपुर कांग्रेस के लिए ऐतिहासिक थी बल्कि अन्नू की नेतृत्व क्षमता को भी साबित कर गई। महापौर बनने के बाद उनका कद लगातार बढ़ता गया और कांग्रेस में उनकी पकड़ मजबूत होती चली गई। 

विधानसभा चुनाव में टिकट से इनकार 

साल 2023 में जबलपुर कैंट विधानसभा सीट से कांग्रेस अन्नू को उम्मीदवार बनाना चाहती थी, लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। फिर, कांग्रेस ने अभिषेक चिंटू चौकसे को उम्मीदवार बनाया, लेकिन वे भाजपा के मजबूत किले को भेदने में नाकाम रहे और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बाद अनू पर कांग्रेस के बड़े नेताओं की उम्मीदें और बढ़ गईं।

लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में हुए थे शामिल 

विधानसभा चुनाव की हार के बाद कांग्रेस के भीतर यह चर्चा होने लगी कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जगत बहादुर सिंह अन्नू को कांग्रेस जबलपुर लोकसभा सोट से उतार सकती है। लेकिन इसी बीच अन्नू ने कांग्रेस को तगड़ा झटका देते हुए भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा कि वे जबलपुर का विकास करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने यह निर्णय लिया। 

भाजपा में जाने पर जनता में रोष 

महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने से आम जनता में नाराजगी देखी जा रही है। नागरिकों का कहना है कि उन्होंने कांग्रेस को चुना था, न कि व्यक्तिगत रूप से अन्नू को। लोग इसे जनादेश के साथ विश्वासघात मान रहे हैं। 

भाजपा में जाने के बाद राजनीतिक पहचान हुई धुंधली 

अन्नू के भाजपा में जाने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गहरा आघात लगा, क्योंकि वे उन्हें जबलपुर कांग्रेस का सबसे मजबूत चेहरा मानते थे। लेकिन भाजपा में जाने के बाद अन्नू की राजनीतिक पहचान धीरे-धीरे धुंधली होने लगी है। कांग्रेस में वे पोस्टर बॉय थे, लेकिन भाजपा में आने के बाद वे पार्टी के पोस्टरों और बैनरों से गायब होते चले गए। अब जब भी उनकी तस्वीर भाजपा के किसी पोस्टर या बैनर में दिखाई देती है, तो ऐसा लगता है जैसे भाजपा के कार्यकर्ता उन्हें राजनीतिक तौर पर बेइज्जत करने के लिए उनकी तस्वीर लगा रहे हैं। 

क्या भाजपा में लंबी पारी खेल पाएंगे अन्नू ? 

जगत बहादुर सिंह अन्नू ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने का जो फैसला किया, वह उनके राजनीतिक भविष्य के लिए कितना सही साबित होगा, यह आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन जिस तरह से भाजपा में उनकी सक्रियता कम हो रही है और उनकी उपेक्षा बढ़ती जा रही है, उससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या उन्होंने अपने ही हाथों से अपनी सियासी जमीन को खो दिया है? सियासत में फैसले बहुत मायने रखते हैं, और अन्नू का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना उनकी राजनीतिक यात्रा का एक बड़ा मोड़ था। पर यह मोड़ उन्हें ऊंचाई तक लेकर जाएगा या गुमनामी में धकेल देगा, यह देखना दिलचस्प होगा। 

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