दैनिक सांध्य बन्धु भोपाल। मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में औद्योगिक विकास की गति धीमी होने को लेकर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने सार्वजनिक मंच पर अपनी पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि ग्वालियर के विकास के लिए उनके दरवाजे पर बैठना पड़े, तो वह बैठने को तैयार हैं।
'ग्वालियर पिछड़ता जा रहा है'
ग्वालियर के विजयाराजे सिंधिया गर्ल्स कॉलेज में आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए प्रद्युम्न सिंह तोमर ने ग्वालियर के ऐतिहासिक महत्व और औद्योगिक समृद्धि का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि 1956 में जब मध्य प्रदेश बना था, तब ग्वालियर का विकास इंदौर, जबलपुर और भोपाल से कहीं अधिक था। लेकिन आज यह शहर पिछड़ता जा रहा है। उन्होंने बताया कि ग्वालियर में कभी सिमको रेशम मिल और कांच मिल जैसी कई औद्योगिक इकाइयां थीं, लेकिन अब वे बंद हो चुकी हैं।
सिंधिया को दी सीधी चुनौती
ऊर्जा मंत्री तोमर ने मंच से ज्योतिरादित्य सिंधिया से अपील करते हुए कहा, "श्रीमंत महाराज साहब, आपसे इस सेवक की विनती है कि आपको आगे आना ही पड़ेगा। कुछ मजबूरियां हो सकती हैं, लेकिन उस सीमा रेखा को आपको ही लांघना पड़ेगा।" उनके इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई।
'यह राजनीतिक बयान नहीं' – तोमर
जब मीडिया ने इस बयान पर प्रतिक्रिया मांगी, तो प्रद्युम्न सिंह तोमर ने कहा कि यह किसी पार्टी विशेष का मुद्दा नहीं है, बल्कि ग्वालियर के विकास की चिंता से जुड़ा मामला है। उन्होंने साफ किया कि उन्होंने किसी भी राजनीतिक उद्देश्य से यह बयान नहीं दिया है, बल्कि शहर के भविष्य को लेकर अपनी पीड़ा जाहिर की है।
सियासी समीकरणों में बदलाव के संकेत
प्रद्युम्न सिंह तोमर के इस बयान के बाद ग्वालियर से भोपाल तक राजनीतिक माहौल गर्मा गया है। यह साफ हो गया है कि ग्वालियर की राजनीति में सिंधिया खेमा और नरेंद्र सिंह तोमर खेमा के बीच खींचतान तेज हो गई है।
BJP में सिंधिया का घटता प्रभाव?
कभी कांग्रेस में रहते हुए ग्वालियर-चंबल अंचल की राजनीति के केंद्र रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के BJP में आने के बाद से उनकी राजनीतिक सक्रियता पर सवाल उठते रहे हैं। माना जा रहा है कि BJP में आने के बाद उन्हें ग्वालियर की राजनीति से दूर रखा गया है, जिससे उनके समर्थकों में निराशा है। चर्चा यह भी है कि मुख्यमंत्री के ग्वालियर दौरे में अब सिंधिया को आमंत्रित नहीं किया जाता, जिससे उनके समर्थकों को नकारात्मक संदेश मिल रहा है।
ग्वालियर की राजनीति में इस नए घटनाक्रम से आने वाले समय में सत्ता संतुलन बदल सकता है। अब देखना होगा कि सिंधिया इस बयान पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं और बीजेपी नेतृत्व इस पूरे घटनाक्रम को कैसे संभालता है।
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