दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर/ अतुल बाजपेयी। यारा....आज जब फिर से वक़्फ़ का नाम आया, तो दिल में एक सवाल उठ खड़ा हुआ कि वो ज़मीनें, जो मुस्लिम समाज के बुज़ुर्गों ने अल्लाह के बताए रास्तों में चलने के लिए वक़्फ़ की थीं — ताकि मजलूमों के सिर पर छत हो, यतीम बच्चों को तालीम मिले, बीमारों को इलाज के लिए अस्पताल मिलें — अबअचानक सरकार की नजरों में क्यों अहम हो गई हैं...?
ज़बाब था नया वक़्फ़ अधिनियम आया है। और इस बार सिर्फ़ क़ानून नहीं बदला, सरकार की नीयत भी कुछ बदली-बदली सी लग रही है। बिल के संशोधन में कहा गया है कि वक़्फ़ की तमाम जायदादों का डिजिटल रिकॉर्ड बनेगा। यानि अब वो ज़मीनें जो बरसों से गुमनामी में थीं, जिन्हें या तो भू-माफ़िया निगल गए या अफ़सरशाही ने अनदेखा किया अब वो दस्तावेज़ों में नहीं, हक़ीक़त में नज़र आएंगी। इस नए डिजिटलीकरण से मुस्लिम समाज को अपनी संपत्तियों पर बेहतर नियंत्रण मिलेगा, और भविष्य में किसी भी प्रकार के अवैध कब्जे से भी बचाव होगा।सरकार कहती है, नए संसदीय बिल के अनुसार वक़्फ़ बोर्ड में अब ऐसे लोग को ही शामिल किए जाएंगे जो पढ़े-लिखे हों, समझदार हों, और सबसे बढ़कर ईमानदार हों।
ऐसे और भी कई नियम इस नए संशोधित अधिनियम में जोड़े गए हैं जो अधिकांश मुस्लिम समाज के लिए हितकारी समझ में आते हैं... अब ये ज़िम्मेदारी मुस्लिम समाज की भी है कि वे सिर्फ़ शिकायतें ही न करें, बल्कि अपने हक़ की बात को समझें और उसके लिए खड़े भी हों। नए नियमों के तहत वक़्फ़ बोर्ड के गठन का उद्देश्य मुस्लिम समाज के हक़ के मामलों में पारदर्शिता लाना समझ में आ रहा है, ताकि अब वक़्फ़ संपत्तियों के इस्तेमाल और उनके उद्देश्य को सही तरीके से सुनिश्चित किया जा सके।
यदि ये नया संशोधित अधिनियम सही तरीक़े से लागू हुआ, तो ये सिर्फ़ क़ानून नहीं रहेगा बल्कि ये मुस्लिम समाज की तरक़्क़ी का एक नया दरवाज़ा खोलेगा। तो अब मुस्लिम समाज को ये सोचने की ज़रूरत है कि क्या वे तैयार हैं.. ? क्या मुस्लिम समाज अपने बुजुर्गों द्वारा वक़्फ़ की गई संपत्ति को सिर्फ़ "पुरानी ज़मीन" समझता है, या उसे एक अमानत समझकर उससे तालीम, तरक़्क़ी और तहज़ीब की रौशनी पैदा करना चाहता है..? मुस्लिम समाज की वक़्फ़ ज़मीने सिर्फ़ मिट्टी नहीं इनमें मुस्लिम समाज के बुज़ुर्गों की दुआएं भी शामिल है, ये संपत्तियाँ मुस्लिम समाज का इतिहास है, और मुस्लिम समाज की आने वाली नस्लों की अमानत भी है।
मुस्लिम युवाओं को भी चाहिए कि वह भीड़ का हिस्सा बनकर सिर्फ़ ताली न बजाएं,अपने सरपरस्तों से सवाल भी करें। और जानें कि हमारे शहर जबलपुर में कौन-कौन सी वक़्फ़ संपत्तियाँ हैं, वर्तमान में किसके हाथ में हैं, और क्या उनका इस्तेमाल वाक़ई उन नेक मकशदो के लिए हो रहा है, जिसके लिए बुजुर्गों ने अपनी मेहनत से हासिल की संपत्ति को वक़्फ़ किया था...? वक़्फ़ का यह नया अध्याय, अगर सही लिखा गया है, तो ये मुस्लिम समाज की पेशानी पर रोशनी की एक नयी लकीर बन सकता है।