दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर/Jabalpur। देश की जनता एक बार फिर महंगाई की चपेट में आ गई है। केद्र सरकार ने घरेलू रसोई गैस सिलिंडर के दाम में 50 रुपए की सीधी बढ़ोतरी कर दी है। अब जबलपुर सहित कई शहरों में एक सिलिंडर की कीमत 1100 रुपए से 1200 रुपए तक पहुँच गई है।
वहीं पेट्रोल और डीजल के दामों में 2 रुपए प्रति लीटर का इज़ाफ़ा किया गया है, लेकिन केद्र सरकार का कहना है कि इसका बोझ आम आदमी पर नहीं, बल्कि तेल कंपनियाँ – इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम – खुद उठाएँगी।
सवाल यह है कि आम जनता के लिए असली मार कहाँ है?
जवाब है – रसोई गैस की कीमत में बढ़ोतरी।
हर घर की रसोई पर असर
रसोई गैस केवल एक ईंधन नहीं, हर घर की बुनियादी ज़रूरत है। जब गैस महँगी होती है, तो सिर्फ आग नहीं जलती – बजट भी जलता है। दाल-रोटी, सब्ज़ी-पूरी, बच्चों का टिफिन, बुजुर्गों की चाय – हर चीज़ की कीमत बढ़ जाती है।
“पेट्रोल-डीजल महंगा हो गया है साहब।” दुकानदार ये बहाना बनाकर पहले से ही महंगे भाव पर सामान बेचने लगे हैं – अब उसमें गैस की महंगाई भी जुड़ गई। महँगाई की यह चुपचाप मार हर घर के चूल्हे तक पहुँच रही है।
और इधर विपक्ष... विश्राम पर?
सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि इस बार विपक्ष पूरी तरह खामोश है। जबलपुर के वो कांग्रेस नेता जो बात-बात में चक्का जाम,थाने का घेराव, से लेकर जबलपुर बंद करने बात करने लगते हैं वे इस घर-घर से जुड़े मुद्दे पर पूरी तरह से मौन क् यों हैं। ना कोई बयान, ना धरना, ना गैस सिलिंडर लेकर प्रदर्शन – कुछ भी नहीं।
क्या महँगाई अब इतना ‘सामान्य मुद्दा’ हो गई है कि उस पर विरोध प्रदर्शन करना अब ज़रूरी नहीं समझा जाता या फिर अभी दूर-दूर तक कोई चुनाव नजर नहीं आ रहे हैं इसलिए विपक्ष आराम कर रहा है...?
क्या जबलपुर देश का हिस्सा नहीं है....?
जबलपुर के एक कांग्रेस नेता से जब रसोई गैस के बढ़ते दामों पर सवाल पूछा गया, तो उनका जवाब था— "ये राष्ट्रीय मुद्दा है ...अरे नेताजी तो क्या जबलपुर देश का हिस्सा नहीं है..? या जबलपुर की जनता महँगाई से अछूती है याद कीजिए वो दौर जब विपक्ष में बैठे भारतीय जनता पार्टी के नेता 800 रुपए में मिलने वाले सिलेंडर को 'महँगा' बताते हुए सड़क से लेकर संसद तक प्रदर्शन करते थे। जगह-जगह सिलेंडर उठाकर "जनता का पैसा लूटना बंद करो!" नारे लगाए जाते थे – और आज देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और वही सिलेंडर 1200 रुपए में बिक रहा है, लेकिन विपक्ष में बैठी कांग्रेस के पास न वो नारे हैं, न वो प्रदर्शन, न वो जोश। है कि वे भारतीय जनता पार्टी की सरकार से यह पूछ सके की क्या अब सत्ता में आने के बाद उन्हें महँगाई 'कम दिखती है'...?
सोशल मीडिया तक सीमित विपक्ष के नेता....?
विपक्ष का काम केवल ट्वीट करना नहीं, जनता की आवाज़ को सत्ता के कानों तक पहुँचाना भी है। आज अगर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल वाकई जनता के साथ हैं, तो उन्हें इस बढ़ती महँगाई के ख़िलाफ़ सशक्त आंदोलन करना चाहिए। और उन्हें सरकार और सांसदों को यह याद दिलाना होगा कि जो आवाज 800 रुपए गैस सिलेंडर के दाम पर उठी थी, वो आवाज 1200 रुपए के गैस सिलेंडर पर चुप क्यों हैं...? जनता जवाब चाहती है – और ये सवाल अब सड़कों पर उतरना चाहता है।
राजनीति चुप हो सकती है, लेकिन रसोई नहीं।